Matric Exam Class- 10th Bihar Board
10th

Matric Exam Class- 10th Bihar Board Hindi बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा महत्पूर्ण ऑब्जेक्टिव सब्जेक्टिव हिंदी में

Matric Exam Class- 10th Bihar Board

1. प्रेम की पीर’ के कवि हैं।

(A) गुरुनानक                           (B) रसखान

(C). घनानंद                             (D) प्रेमघन

2. ‘मो० अँसुवानिहिं लै बरसौ’ के कवि हैं।

(A). घनानंद             (B) भारतेन्दु

(C) रसखान             (D) प्रेमघन

3. तुम कौन-सी पारी पढ़े हौ कहौ मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं पंक्ति किस कविता की है?

(A) मेरे बिना तुम प्रभु

(B) प्रेम-अयनि श्री राधिका

(C) .अति सुधो सनेह को मारग

(D) मो अँसुवानिहिं लै बरसौ है।

4. घनानंद का जन्म कब हुआ था?

(A) 1669 ई० के आस-पास

(B) 1679 ई० के आस-पास

(C) .1689 ई० के आस-पास

(D) 1699 ई० के आस-पास

5. घनानंद किस युग के कवि हैं?

(A) आदिकाल                        (B) भक्तिकाल

(C) .रीतिकाल                       (D) आधुनिक काल

6. घनानंद की रचना है

(A) सुजान रसखान                    (B) प्रेमवाटिका

(C) जपुजी                               (D) .सुजानसागर

7. घनानंद किस मुगल बादशाह के यहाँ मीर का काम करते थे?

(A) जहाँगीर                        (B) शाहजहाँ

(C) औरंगजेब                     (D) .मोहम्मद शाह रंगीले

8. कवि ने ‘परजन्य’ किसे कहा है?

(A) कृष्ण                    (B) सुजान

(C). बादल                  (D) हवा

9. घनानंद कवि हैं

(A) .रीतिमुक्त                   (B) रीतिबद्ध

(C) रीतिसिद्ध                   (D) छायावादी

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10. आचार्य शुक्ल ने किसके संबंध में कहा है कि ‘प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जवादान का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ।”

(A) रसखान               (B) भारतेन्दु

(C) .घनानंद               (D) प्रेमघन

11. घनानंद के प्रमुख ग्रंथ है

(A) सुजानसागर                     (B) विरहलीला

(C) रसकेलि बल्ली                  (D). उपर्युक्त सभी

12. नादिरशाह के सैनिकों द्वारा घनानंद कब मारे गये?

(A) 1689                             (B) 1699

(C) 1729                           (D). 1739

13. घनानंद के अनुसार कौन-सा मार्ग अति सीधा और सरल है?

(A) पुष्टि मार्ग                       (B). स्नेह मार्ग

(C) भक्ति मार्ग                    (D) निश्छल मार्ग

14.घनानंद की कविता में किसकी गहरी व्यंजना है?

(A) प्रेम की पीड़ा                  (B) मस्ती

(C) वियोग                           (D) .उपर्युक्त सभी

15. नादिरशाह के सैनिकों ने किसे मार डाला?

(A) गुरुनानक को                          (B) .घनानंद को

(C) रसखान को                              (D) तुलसी को

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16. ‘मो ॲसुनानिहि लै बरसौ कौन कहते हैं?

(A) रसखान                                     (B) गुरु नानक

(C) .घनानंद                                     (D) दिनकर

17. ‘विरहलीला’ किसकी रचना है?

(A) रसखान                                           (B) कबीर

(C) .घनानंद                                           (D) प्रेमघन

18. ‘घनआनंद’ जीवनदायक हौ कछू मेरियौ पीर हिएँ परसौ । प्रस्तुत पंक्ति में किस कवि का नाम आया है?

(A) प्रेमघन                                            (B) .घनानंद

(C) घनश्याम                                         (D) बिहारी लाल

19. ‘रसकेलि बल्ली’ किसकी रचना है?

(A) कबीर                               (B) जायसी

(C) जीवनानंद दास                   (D). घनानंद

20. घनानंद के संबंध में किसने कहा कि—“प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जबॉदानी का ऐसा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ है। “?

(A) रामविलास शर्मा                               (B) नामवर सिंह

(C) .आचार्य रामचन्द्र शुक्ल                     (D) हजारी प्रसाद द्विवेदी

21. कवि के अनुसार परहित के लिए देह कौन धारण करता है?

(A) अमृत                                     (B). मेघ

(C) घनानंद                                  (D) सुजान

22. कवि अपने आँसुओं को कहाँ पहुँचाना चाहता है—

(A) भगवान के पास                                              (B) मेघों के पास

(C) .अपनी प्रेमिका सुजान के पास                          (D) इनमे से कोई भी नही

23. ‘मो ॲसुवानिहिं लै बरसौ’ के कवि हैं

(A) रसखान                  (B) प्रेमघन

(C) पंत                        (D) .घनानंद

24. रीतिमुक्त काव्यधारा के सिरमौर कवि हैं—

(A) दिनकर                    (B) कबीर

(C) पंत                          (D). घनानंद

25. किस कविता में घनानंद प्रेम के सीधे, सरल और निच्छल मार्ग की प्रस्तावना करता है?

(A). अति सूधो स्नेह को मारग है

(B) मो ॲसुवानिहिं लै बरसौ

(C) करील के कुंजन ऊपर वारौं

(D) प्रेम अयनि श्री राधिका

26. ‘कुंजन’ का अर्थ है

(A) कंवल                             (B) तालाब

(C) .बगीचा                          (D) इन्द्र

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प्रश्न —

(क) ऐसा क्यों लगता है कि लोभी सामान्य इंसान नहीं होती?

(ख) लोभी का धन किसके काम आता है?

(ग) लोभ बुरा है, क्यों?

(घ)लोभी हमेशा धन के अभाव का अनुभव क्यों करता है?

(ड़) लोभी मनुष्य सामान्य इंसान क्यों नहीं होता?

उत्तर-

(क) लोभी मनुष्य की मानसिक स्थिति विचित्र ही होती है। धन के प्रति उसकी ललक की तीव्रता और उत्कटता को देखकर ऐसा लगता है मानों वह सामान्य इंसान नहीं होता।

(ख)लोभी का धन सदा दूसरों के काम आता है क्योंकि लोभी धन का स्वयं उपयोग नहीं कर पाता है।

(ग) लोभ से असंतोष की वृद्धि होती है और संतोष का सुख खाक में मिल जाता है। लोभ से भूख बढ़ जाती है और तृप्ति घटती है।
इसलिए लोभ बुरा है।

(घ) लोभी व्यक्ति की कमी कल्पित होती है, वह कभी संतुष्ट नहीं होता है। इसलिए हमेशा धन का अभाव अनुभव करता है।

(ङ)धन के प्रति ललक की तीव्रता और उत्कटता के कारण लोभी व्यक्ति की मानसिक स्थिति विचित्र सी होती है। इस कारण से वह सामान्य इंसान नहीं होता है।

प्रश्न-

(क) मनुष्य का चरित्र कैसा होना चाहिए?

(ख) कैसा व्यक्ति मुर्दे से भी बदतर होता है?

(ग) जीवित मनुष्य मुर्दा से भी बदतर कब हो जाता है?

(घ)चरित्रभ्रष्ट व्यक्ति के संगति का प्रभाव कैसा होता है?

(ङ) एक उचित शीर्षक दें।

उत्तर—

(क) मनुष्य का चरित्र तलवार की धार के समान होना चाहिए।

(ख) चरित्रहीन व्यक्ति मुर्दे से भी बदतर होता है।

(ग) यदि जीवित मनुष्य का चरित्र नष्ट हो गया तो, वह मनुष्य मुर्दे से
भी बदतर हो जाता है। मुर्दा किसी का बुरा नहीं करता, परन्तु चरित्र भ्रष्ट व्यक्ति बुरा कर देता है।

(घ) एक चरित्र भ्रष्ट व्यक्ति अपने साथ रहनेवालों को भी अपने ही रास्ते पर ले जाकर अवनति एवं सत्यानाश के भयावह गड्ढे में ढकेल देता है।

(ङ) ‘चरित्र की महत्ता’।

 

प्रश्न-

(क) प्रस्तुत गद्यांश का एक उपयुक्त शीर्षक दें ।

(ख) विकास के क्रम में मनुष्य ने किस पर और क्या आरोपित करनी चाही ?

(ग) आज भी मनुष्य प्रकृति का ही पुत्र हैं, कैसे?

(घ) मनुष्य क्या ठीक-ठीक नहीं समझ सका है ?

(ङ)मनुष्य के पराजय और आत्म- हनन की गाथा क्या है ?

उत्तर—

(क) ‘प्रकृति और मनुष्य’

(ख)विकास के क्रम में मनुष्य ने शीघ्र ही प्रकृति पर अपनी इच्छा आरोपित करनी चाही ।

(ग) आज भी मनुष्य प्रकृति का ही पुत्र है क्योंकि प्रकृति पहले से थी,

(घ) मनुष्य बाद में आया। जन्म, जीवन, यौवन, जरा, मरण आदि अपनीअनेक स्थितियों में वह आज भी प्राकृतिक नियमों से मुक्त नहीं हो सका है।मनुष्य की निरन्तर चेष्टा यही रही है कि वह ज्ञान-विज्ञान की अपनी सामूहिक उद्यमशीलता के बल पर प्रकृति को पूर्णतः अपने वश में कर ले। यह इतिहास मनुष्य के विजय और प्रगति का इतिहास है। या उसकी पराजय और दुर्गति का, इसे वह स्वयं भी ठीक-ठाक नहीं समझ सका है ।

(ङ) प्रकृति और मनुष्य के संघर्ष में जिसे हम मनुष्य की जय गाथा कहकर पुलकित हो रहे हैं, वह असल में उसके आत्महनन की गाथा है ।

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